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येसा नहीं होना था।

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कल ट्रेन से कटकर आँखों में दर्द भरी मासूमियत से कराह रही ये हथिनी आज इस संसार से चली गयी।उसका कसूर बस इतना था कि वो अपने बच्चो के पास घर को वापिस उस रास्ते से लौट रही थी जहाँ हमने अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए विकास के नाम पर ऐसे नेटवर्क खड़े कर दिए जो इन न बोल सकने बाले जीवो के घरों को तबाह करके निर्मित किये जा रहे है।
हम शायद भूल चुके है कि ईश्वर की बनाई इस खूबसूरत प्रकृति और धरा पर जीने का जितना अधिकार मनुष्य को है उतना ही इन वन्य जीवों को भी….
ये सड़को रेल पर से नही निकलते हमारी सडके हमारी रेल इनके घरों से गुजरती है।
आज ये हथिनी के मासूम बच्चो का इन्जार खत्म हो गया क्योकि उनकी माँ अब कभी वापिस नही लौटेगी ….परन्तु आज इनके घरों व पर्यावरण को तबाह करने की कीमत कल शायद हमारे बच्चो और आने बाली पीढ़ी को भी इसी तरह जरूर चुकानी पड़ेगी क्योकि प्रकृति अपने साथ किये हर गुनाह का हिसाब एक दिन जरूर करती है…।

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